V.S Awasthi

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धनतेरस पर्व

प्रतियोगिता हेतु रचना 
धनतेरस पर्व 
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धनवानों की जेब में धन है, धनतेरस वही मनाते हैं।
हम ठहरे निर्धन अनाथ, अरमान दबा रह जाते हैं।।
धनवान सभी घर बाहर तक घी के दिये जलाते हैं।
हम ठहरे निर्धन अनाथ अरमानों के दिये जलाते हैं।।
मेरे बच्चे ललचाई आंखों से देख पटाखे खुश होते।
देख मिठाई खाते बच्चों को मां से चिपट कर हैं रोते।।
मंहगाई की मार पड़ रही लइया, गट्टे सब हैं मंहगे।
बच्चों को कपड़े ला ना सके बीबी को ना लाए लंहगे।।
मिट्टी के दिये बेचने निकले दिये नहीं बिक पाये हैं।
इतने पैसे पास नहीं थे गणपति, लक्ष्मी ना लाये हैं।।
मंहगाई का दौर चल रहा बिन तेल दिये सब हैं खाली।
घर में आटा दाल नहीं है घर के डब्बे भी हैं खाली।।
धनवानों का त्योहार है ये जिसको कहते सब दीवाली।
हम ठहरे गरीब निर्धन अनाथ कैसे हम मनाएं दीवाली।।
मां लक्ष्मी से करते विनती मुझको भी थोड़ा धन दे देना।
पूजा अर्चन कर रहा "पथिक" बच्चों को खुश कर देना।।
श्रद्धा से पूजन वन्दन करता रोली अक्षत मैं लाया हूं।
मूरत मेरे तो दिल में बसी  मिष्ठान नहीं ला पाया हूं।।
जो रूखा सूखा दिया मुझे उसका मैं भोग लगाता हूं।
लक्ष्मी मेरे घर आन बसो चरणों में शीश झुकाता हूं।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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4 Comments

Punam verma

11-Nov-2023 08:58 AM

Very nice

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Abhinav ji

11-Nov-2023 08:14 AM

Nice 👍

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यथार्थ चित्रण वास्तविकता का

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